दोस्तों
मैं बम बम आप सभी का स्वागत करता हूं, पुनः मैं आप लोगों के लिए एक बेहतरीन सा कविता लेकर आया हूं।
मैं इस कविता के माध्यम से आप सभी को समझाना चाहता हूं इंसान अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं, फिर से जाति प्रथा से घिरना कर रहे हैं, माता पिता को बुजुर्ग आश्रम में पहुंचा रहे हैं।
आप इस आर्टिकल को पूरा ध्यान से जरूर पढ़ें क्योंकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस कविता को लिखा गया है ।
और उम्मीद है आप पिछले आर्टिकल को जरुर पढ़े होंगे।
क्यों भूल गया रे इंसान
तुम भी था एक पशु प्रकृति का ,
अभी भी है पशुता की पहचान,
फिर भी करते हो अपने आप पर गुमान,
क्यों भूल गया रे इंसान।।
जब तुम आया इस मातृभूमि पर,
तुझे नहीं था कोई जात पात का पहचान,
तेरे वंशों ने तुझे बताया तुम हो इसी वंश का संतान,
भूल क्यों गया रे इंसान।।
माता-पिता ने तुझे चलना सिखाया
फिर भी नहीं करते हो उसका सम्मान
उसके बिना तुम नहीं बन पाओगे महान
भूल गया रे क्यों इंसान
अर्थ:- वर्तमान समय में मानव अपने संस्कृतियों को भूल रहा है, उसे यह भी पता नहीं है हमारे पूर्वज एक पशु थे, और अभी भी उनका पहचान है जैसे पहचान के रूप में हमारे नाखून है
फिर भी अपने आप पर गुमान कर रहे हैं।
जब तुम आया इस मानव जग में तो तुझ पर नहीं था कोई जाति धर्म का पहचान, बूढ़े बुज़ुर्गों ने बताया तुम हो इसी जाति धर्म का संतान ,
माता-पिता ने तुझे उंगली पकड़कर चलना सिखाए, और तुम आज उसे बुजुर्ग आश्रम भेज रहे हो, ना ही उनका कोई सम्मान कर रहे हो लेकिन माता पिता के आशीर्वाद के बिना तुम नहीं बन पाओगे एक सफल इंसान।
दोस्तों अभी वर्तमान समय में सभी अपने संस्कृति को भूलते जा रहे हैं विदेशी को अपनाते जा रहे हैं,अपने वंश अपने समाज अपने बुजुर्ग माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं, हमें ऐसी नहीं करनी चाहिए अपने वृद्ध माता-पिता का सम्मान करना चाहिए आदर करना चाहिए,
तो मुझे उम्मीद है आपको हमारे आर्टिकल पसंद आया होगा तो आप जरूर इसे शेयर करें एवं कमेंट में जरूर बताएं कि आपने इस से क्या सीखा.......
All rights bhai
जवाब देंहटाएंThanks dear
हटाएंबहुत ही सच्ची व सुन्दर पंक्तियां
जवाब देंहटाएंThanks dear
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